दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन जो कभी पं. जवाहर लाल नेहरू का सरकारी आवास हुआ
करता था जहां उन्होंने 16 वर्ष गुजारे
थे। यही तीन मूर्ति भवन आजादी से पूर्व
ब्रिटिश इंडियन आर्मी कमांडर-इन-चीफ का भवन हुआ करता था। इसके बाहर स्थित तीन
आदमकद मूर्तियां जों तीन भारतीय रियासतों के बहादूर सैनिकों द्वारा प्रथम विश्व
युद्ध में प्रदर्शित किये गए अदम्य साहस के प्रतिक के रूप में स्थापित की गई थी।
तीन मूर्ति भवन स्थित तीन सैनिकों की मूर्तियां तीन रियासते जोधपुर, मैसुर एवं हैदराबाद का प्रतिनिधित्व करती है।
जोधपुर, मैसुर एवं हैदराबाद
लांसर्स के सैनिक हैफा (इजरायल) के मोर्चे पर ब्रिटिश सेना की तरफ से लड़े थे। इस
समय हैफा पर ओटोमन साम्राज्य, जर्मन एवं ऑस्ट्रो-हंगरियन
सेना ने कब्जा जमा रखा था। हैफा को मुक्त कराने की जिम्मेदारी भारतीय सैनिकों को
सौंपी गई थी जो कि मित्र राष्ट्रों की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में भाग ले रहे
थे।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 23 सिंतबर 1918 को इजरायल के
बंदरगाह नगर हैफा को बचाने में 900 भारतीय सैनिकों
ने बलिदान दिया था। अत: प्रत्येक 23 सितम्बर को
भारतीय सेना “हैफा दिवस” के रूप में मनाती है। इसी दिन 15वीं इम्पीरियल सर्विस केवलरी ब्रिगेड ने हैफा
को शत्रुओं से मुक्त कराने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी। शत्रुओं के गोला,
बारूद और मशीनगन से लगातार चल रही गोलीयां भी
सरपट तेजी से दौड़ते घोड़ों पर सवार बहादूर सैनिकों को नहीं रोक सकी।
कैप्टन बहादूर
अमन सिंह जोधा तथा दफादार जोर सिंह को उनकी बहादूरी के लिए इंडियन ऑर्डर ऑफ़ मेरिट
से नवाजा गया। कैप्टन अनोप सिंह तथा सैंकड लेफटिनेनट सगत सिंह को मिलट्रि क्रॉस से
नवाजा गया। मेजर ठाकूर दलपत सिंह जो कि हैफा नगर की आजादी में अतिमहत्वपूर्ण
भूमिका निभाने के कारण ‘हैफा के हीरो’
के नाम से भी जाने जाते है। भारतीय सैनिकों के
इसी योगदान के देखते हुए हैफा की म्यूनसिपलिटी ने हैफा की आजादी के भारतीय द्वारा
किए संघर्ष को स्कूल के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया है।
बीसवीं शताब्दी के युरोपीय महायुद्ध के समय भी जोधपुर के
रिसाले ने जो वीरता दिखलाई थी, उस की ब्रिटिश और
भारत गवर्नमेंट ने मुक्त कंठ प्रशंसा की थी। उदाहरण के लिए ई. सन् 1918 की 23 सितंबर की घटना का विवरण पर्याप्त होगा।
उस समय टर्की के शत्रु पक्ष में मिल जाने से
मिस्त्र इजिप्ट के रणस्थल में भीषण युद्ध हो रहा था। इसी से ई. सन् 1918 के मार्च से जोधपुर -रिसाले को पिश्चम के
रणक्षेत्र से हटाकर पूर्व के रणक्षेत्र में भेजा गया। जिस समय यह रिसाला हैफा के
सामने पहुंचा, उस समय उस नगर को
टर्की के युद्ध विशारदों ने पूर्ण रूप से सुरक्षित कर रखा था और वे इस रिसाले को
देखते ही वहां के सुरक्षित मोरचों में बैठ भीषण नाद के साथ आग उगलने वाली अपनी
तोपों से इस पर गोले बरसाने लगे। वहा पर जोधुपर रिसाले के और हैफा के बीच नदी की
प्राकृत बाधा होने से शत्रु की सेना और भी सुरक्षित हो रही थी। यह देख अनुभव और
कुशल ब्रिटिश सेनापति ब्रिगेडियर जनरल
एडिए किंग ने सेना को वापस बुलाने के आदेश दिए, परन्तु मारवाड़ के वीरों को शत्रु
के सामने पहुच पीछे पैर रखना सहन नहीं था।
इन्होंने अपने सेनापति की नेतृत्व में
चमचमाते हुए भालों से शत्रु पर आक्रमण कर दिया। इन्हें इस प्रकार मृत्यु को आलिंगन
करने के लिये आगे बढ़ते देख, शत्रु ने इन्हें
नदी के पार रोक रखने के लिये, अपनी गोला-वृष्टि
को और भी तीव्रतम कर दिया। परन्तु जोधपुर- रिसाले ने इसकी कुछ भी परवाह न की और
कुछ ही देर में नदी, शत्रु की
गोल-वृष्टि और उसके सुदूढ़ मोरचों की बाधाओं को पार कर हैफा नगर का अधिकार कर लिया।
इस युद्ध में राजपूतों के भालों से अनेक तुर्क-योद्धा मारे गए और करीब 700 जिन्दा पकड़े गए।
इसी प्रकार की वीरता ई. स. 1918 की 14 जुलाई के जार्डन घाटी के युद्ध में भी जोधपुर
के रिसाले ने अद्भुत वीरता दिखलाई थी। इन कार्यों का उल्लेख ब्रिटिश सेनापतियों के
पत्राचारों में और भारत के उस समय के वायसराय लार्ड चैम्सफोर्ड की 20 नवंबर 1920 को जोधपुर में दिए भाषण में विशद् रूप से मिलता है।
वायसराय ने अपने भाषण में कहाँ था कि-
“By their exploits at Haifa and
in the Jorden Valley recalled the deeds
of their ancestors who fought at Tonga, Merta and Patan. The reputation which
they have gained is well worthy of the glorious annals of Marwar”
अर्थात् ‘‘जोधपुर के वीरों ने हैफा और जार्डन में किए अपने वीरतापूर्ण
कार्यों से अपने पूर्वजों के तुंगा, मेड़ता और पाटन में किए युद्धों की याद ताजा कर दी। इस रिसाले के वीरों ने जो
प्रशंसा प्राप्त की है, वह मारवाड़ की
वीरतापूर्ण प्राचीन गाथाओं के अनुकूल ही है।’’
इस प्रकार के
राजस्थानी वीरों की वीरता के कई और भी किस्से है जों यह बताते है की इस वीर
प्रसूता भूमि पर जन्म लेने वाले रणबाकुरो के शौर्य से न केवल राजस्थान बल्कि भारत
अपितु विश्व भी रोमांचित हो चूका हैं |
भारत-इजरायल राष्ट्राध्यक्ष की यात्रों के दौरान एक बार फिर भारत-इजरायल की दोस्ती
का प्रतिक हैफा का युद्ध संघर्ष सुर्खियों में आ गया हैं | भारतीय प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की 2017 इजरायल यात्रा के
दौरान इजरायल में हैफा युद्ध के नायक दलपत सिंह शेखावत की स्मृति में दोनों
राष्ट्राध्यक्ष ने एक स्मृति पट्टिका का अनावरण किया। वहीं जनवरी 2018 इजरायल प्रधानमंत्री बेंजामीन नेतुन्याहू की
भारत यात्रा के समय तीन मूर्ति मार्ग का नाम बदलकर तीन मूर्ति हैफा चैक कर दिया
गया।
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