Tuesday, 7 November 2017

Padmavati - Real Story - The Pride of Rajputana

पद्मावती

दोहराती हूॅ सूनो रक्त से लिखी हुई कुरबानी
जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी



दोस्तों आज हम बात करेंगे वीरों को जंम देने वाली भूमि चितौड़ की तथा वहाॅ की बेहद खूबसूरत रानी पदमावती की जो इतिहास में पदमिनी के नाम से भी प्रसीद्ध है। हाॅ दोस्तों ये वो ही रानी है जिसे पाने के लिए दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और जब उसे न पा सका तो उसने चितौड़ की बेकसूर 30 हजार जनता का कत्लेआम किया। चलों दोस्तों इतिहास के पन्नों को उलट कर देखते हैं कि वर्ष 1303 में क्या हुुआ था कि एक राजपूत रानी को अपनी इज्जत बचाने के लिए 30 हजार स्त्री पुरूषों की जान को दाव पे लगाना पड़ा था।

अपने समय की बेहद खूबसूरत रानी पद्मिनी का जन्म सिंहल द्वीप में हुआ था उनके पिता गंधर्व सेन थे तथा उनकी माता चंपावती थी। पद्मिनी का जन्म कन्या राशि में हुआ था इसलिए उसका नाम नक्षत्र के अनुसार पद्मावती रखा गया। पद्मिनी रूपवती होने के साथ-साथ विदुषी भी थी। इसी समय वीर प्रसूता भूमि चितौड़ पर गुहिल वंश के राजा रत्नसिंह शासन कर रहे थे। रत्नसिंह एक बहादूर राजा थे जिनकी पटरानी नागमति अत्यंत सुंदर स्त्री थी। एक दिन नागमति डपततवत में देखते हुए खुद की प्रशंसा कर रही थी कि उसके जितना सुंदर पूरे विश्व में कोई भी नहीं है। इतने में मानव की बोली में बोलने वाला हीरामन तोता बोला की जिस सरोवर के तट पर हंस नहीं आता वहाॅ बगुली को ही लोग हंस समझ लेते है। ईष्यावश नागमति ने पूछा कि अगर मैं विश्व की सबसे सुंदर महिला नहीं हॅू तो तुम बताओं की कौन सबसे सुंदर है। इस पर हीरामन तोते ने सिंहल द्वीप की चंद्रमा के समान मुख वाली विश्व की सबसे सुंदर स्त्री पद्मिनी की सुंदरता का बखान किया। इस पूरे वार्तालाप को जब रावल रत्नसिंह ने सुना तो उनके मन में पद्मिनी को अपनी पत्नी बनाने की इच्छा जागी और साधु का वेश बनाकर सिंहल द्वीप की और चल पड़े। 

कई कठिनाईयों एवं मुसीबतों को सहन करते हुए साधु का वेश बना रावल रत्नसिंह सिंहल द्वीप पहॅुचे किंतु गंधर्वसेन ने रत्नसिंह के मुख के तेज से पहचान लिया था कि ये व्यक्ति कोई सामान्य पुरूष ने होकर के कोई राजकुमार है। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि ये तो चितौड़ के शासक रत्नसिंह है तो गंधर्वसेन ने पद्मिनी का विवाह गंधर्वसेन से करा दिया। इस प्रकार रत्नसिंह पद्मिनी को पाने में सफल रहता है।   
रानी की मेहंदी भी नहीं सुख पाई थी कि मेवाड़ राजदरबार में एक गंभीर घटना घटीत हुई। रत्नसिंह के दरबार में एक राघव चेतन नामक जादूगर रहता था जब रावल रत्नसिंह को पता चला कि वो काला जादू करता है तो उसे दरबार से निकाल दिया। राघव चेतन अपने अपमान का बदला लेने के लिए दिल्ली सुल्तान की शरण में चला गया। अलाउद्दीन खिलजी को उसने पद्मिनी की सुंदरता का खुल कर बखान किया तो चारित्रिक रूप से कमजोर सुल्तान जो पहले भी गुजरात की रानी कमला देवी एवं देवगिरी के शासक की पुत्री छिताई पर अपनी बुरी नजर डाल चुका था अब वह पद्मिनी को पाने के लिए चितौड पर हमले के लिए निकल पड़ा।

1303 ई. में दिल्ली का सुल्तान मेवाड़़ के अभेद्य दुर्ग चितौड़ पर घेरा डालता है। आठ महिने घेराबंदी के बाद भी जब सुल्तान चितौड़ को जीत नहीं पाता है तो वह जीतने के लिए छल का सहारा लेता है। अलाउद्दीन खिलजी, रत्नसिंह के समक्ष दोस्ती का हाथ बढ़ता है और केवल चितौड़ दुर्ग देखने की इच्छा जाहिर करता है। जब सुल्तान दुर्ग में आता है तो मेवाड़ी परंपरा के अनुसार उसका खुब अच्छे से स्वागत सत्कार होता है। रत्नसिंह अलाउद्दीन को भोज पर आमंत्रित करते है। भोजन के दौरान सुल्तान को खाना परोसने का कार्य पद्मिनी के साथ सिंहल द्वीप से आई बेहद सुंदर सेविकाए कर रही होती है। अलाउद्दीन उन सेविकाओं की सुंदरता देख चकित रह जाता है, खाना खाने के दौरान ही अलाउद्दीन की नजर ऊपर खिड़की में खड़ी पद्मिनी पर पड़ती है अलाउद्दीन पद्मिनी को देख लेता है और उसकी सुंदरता से इतना आकर्षित हो जाता है कि वह पद्मिनी को पाने के लिए रावल रत्नसिंह को छल से बंदी बना लेता है जब वह सुल्तान को विदा करने जा रहे होते है।

रानी पद्मिनी जो सुंदर होने के साथ ही बड़ी चतुर भी थी, वह अपने बादल व गोरा के सहयोग से छल का जवाब छल से देने की योजना बनाती है। रानी घोषणा करवाती है की वह अपनी 1600 दासियों के साथ सुल्तान के पास आ रही है अतः उसके पति रत्नसिंह को छोड़ दिया जाए। इन 1600 डोलियों में बहादूर राजपूत सिपाही थे। जब सुल्तान रानी आने के खुशी में जश्न मना रहा होता है उधर राजपूत सिपाही हमला कर रत्नसिंह को छुड़ा ले जाते है ंिकंतु इस संघर्ष में गोरा मारा जाता है। सुल्तान को जब ये पता चलता है तो राजपूत सिपाहियों एवं सुल्तान की सेना मे भयंकर युद्ध होता है। इसी के साथ 1303 ई. में मेवाड़ का पहला साका हुआ रावल रत्नसिंह एवं बादल के नेतृत्व में जहाँ वीर राजपूत सिपाहियांे ने केसरिया किया वहीं पद्मिनी के नेतृत्व में राजपूत स्त्रियों ने अपने सतीत्व की रक्षा हेतु स्वंय को अग्नि में समर्पित कर जौहर किया। गोरा, बादल के बलिदान पर कवि नरेन्द्र मिश्र ने ठिक ही कहा है

खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को 
पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को
धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी
  दोहराती हूॅ सूनों रक्त से लिखी हुई कुरबानी
जिसके कारण मिट्टी भी चंदन है राजस्थानी



शूरवीर राजपूत सिपाहियों के अदम्य शौर्य एवं साहसपूर्ण प्रदर्शन के बावजूद भी वे चितौड़ दूर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी के अधिकार में जाने से रोक नहीं पाए। रावल रत्नसिंह की मृत्यु के साथ ही मेवाड़ में बापा रावल के साथ प्रारंभ हुई रावल शाखा का अंत हुआ। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम बदलकर अब अपने बेटे ख्रिज खाॅ के नाम पर खिज्राबाद कर दिया। अलाउद्दीन फिर भी चितौड़ पर अपने अधिकार को लंबे समय तक बनाए न रख सका और बापा रावल के वंशज सीसोदा शाखा के राणा हमीर ने पुनः चितौड़ पर अपना अधिकार स्थापित किया।  

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