Monday, 11 December 2017

एक महान वीर योद्धा - जननायक महाराणा प्रताप - Maharana Pratap (Historical Saga)


जननायक प्रताप


वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जिन्होंने ‘‘स्वतंत्रता’’ जैसे पवित्र एवं उच्च आदर्श की रक्षा के लिए राजसी वैभव, ऐश्वर्य एवं सुख सुविधाओं को छोड़कर जीवन भर पहाड़ो में रह कर संघर्ष किया किया तथा मेवाड़ के ध्येय वाक्य ‘‘जो दृढ़ राखे धर्म को ताही राखे करतार’’ में अपनी अटल एवं अडिग आस्था को बनाए रखा। इसी कारण बहुत से इतिहासकार महाराणा प्रताप को भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी जैसी पदवी से भी विभूषित करते है।
महाराणा प्रताप का जंम 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। प्रताप के जंम को लेकर भी विवाद है कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार प्रथम पुत्र ननिहाल में होता है। जिस वजह से कुछ लोग प्रताप का जंम-स्थल पाली  बताते है, जैसा कि देवेंद्र सिंह शक्तावत ने अपनी पुस्तक ‘महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी’ में बताया है। देवीलाल पालीवाल एवं देवीसिंह मंडावा का मानान है कि राजपरिवार में ऐसी परंपरा नहीं थी जिस वजह से प्रताप का जंम कुंभलगढ़ में ही हुआ था। प्रताप के पिता महाराणा उदयसिंह द्वितीय थे। प्रसीद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार उदयसिंह के 20 रानियां थी जिनसे इनके 25 पुत्र एवं 19 पुत्रियां हुई।

प्रताप अपने सभी भाई-बहनों में बडे़ थे। प्रताप की माता जयवंता बाई थी, जो पाली के सोनगरा अखैराज की पुत्री थी। प्रताप को संभवतः औपचारिक शिक्षा माॅ जयवंता बाई व गुरू राघवेन्द्र से मिली थी। प्रताप का बचपन कुंभलगढ़ और चितौड़ की तलहटी में ही बीता था। अमरकाव्यम् गं्रथ से जानकारी मिलती है कि उदयसिंह ने प्रताप के रहने की व्यवस्था चित्तौड़ दुर्ग के तलहटी में कर रखी थी जहाॅ उनक खाने के लिए पुटक भेज दिया जाता था। प्रताप यह भोजन अपने राजपूूत सहयोगियों के साथ बैठकर करते थे जिससे प्रताप को ऐसे विश्वस्त सहयोगि मिले जिन्होंने जीवनभर उनका साथ दिया। यही वह समय था जब प्रताप मेवाड़ की पहाड़ियों एवं जंगलों से पूरी तरह परिचित हुए और बाद में इसी ज्ञान का सफलतापूर्वक प्रयोग अकबर से हुए संघर्ष में किया। प्रताप ने मेवाड़ के इन्हीं पहाड़ों में घुमकर भीलों से भी आत्मीय संबंध बनाये यहीं वजह है कि संघर्ष काल में प्रताप को भीलों का पूर्ण सहयोग प्रताप हुआ। मेवाड़ की पहाड़ियों से प्रताप को एक नया नाम मिला ‘किका’ जो भीली भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग भील लोग प्यार से अपने लड़को के लिए करते है, शायद आपको जान के आश्चर्य होगा कि समकालीन फारसी स्त्रोतों में भी प्रताप का नाम प्रताप न मिल के किका मिलता है जैसे- अबुल फजल की पुस्तक अकबरनामा एवं बदायूंनी की पुस्तक मुन्तखब-उल-तवारिख में।

प्रताप बहादूर होने के साथ-साथ अद्भुत योद्धा भी थे। प्रताप अपने युवराज रहते मेवाड़ की सेनाओं को युद्धभूमि में तीन महत्वपूर्ण जीत दिलाई थी। इसकी जानकारी हमें अमरकाव्य गं्रथ एवं मंुहणौत नैणसी री ख्यात से मिलती है कि प्रताप एवं वागड़ की सेनाओं के मध्य सोम नदी के किनारे एक घमासान युद्ध लड़ा गया था जिसमें वागड़ के चैहान पराजित हुए। प्रताप की द्वितीय विजय सलूम्बर के राठोड़ों पर थी जिन्हें पराजित कर प्रताप ने छप्पन के प्रदेश पर अधिकार किया था। इस युद्ध में किशनदास द्वारा वीरता का अद्भुत प्रदर्शन करने के कारण उन्हें सलूम्बर की जागीर दि गई तब से सलूंबर के सामन्त किशनावत कहलाए। प्रताप की तीसरी महत्वपूर्ण विजय गोड़वाड़ प्रदेश की पुनर्विजय थी, गोडवाड़ जिस पर जोधपुर के राठौड़ शासक मालदेव ने अधिकार कर लिया था प्रताप ने उसे फिर से जीत मेवाड़ में शामिल कर लिया। निकट भविष्य में प्रताप ने इन्हीं क्षेत्रों का प्रयोग अपनी युद्ध रणनीति में किया। 


इसी दौरान अखिल भारत के विजय के सपने को लेकर निकले शक्तिशाली मुगल सम्राट अकबर ने 1567 ई. में चितौड़ पर एक भयंकर आक्रमण किया। इस समय अपने अनुभवी सरदारों की सलाह को मानकर उदयसिंह अपने परिवार के साथ ईडर चले गये। चितौड़ पतन के बाद उदयसिंह ने अपना अस्थायी ठिकाना गोगंुदा व कुंभलगढ़ को बनाया। चितौड़ हारने के कुछ ही समय बाद होली के दिन 28 फरवरी 1572 को महाराणा उदयसिंह का देहांत हो गया। उदयसिंह के बाद प्रताप सबसे बड़ा पुत्र होने के कारण मेवाड़ के उत्तराधिकारी थे किंतु उदयसिंह ने जैसलमेर के शासक लूणकरण की पुत्री भटियाणी रानी धीरकंवर के प्रभाव में आकर प्रताप के स्थान पर जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देते है।

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